जैसलमेर के सोलंकी (खालत सौलंकी)
जैसलमेर के उतरी पश्चिमी क्षेत्र के खडाल तथा आसपास के क्षेत्रों में खालत सोलंकी राजपूत लगभग 1000 वर्षों से रह रहे हैं।इनके पूर्वज भोज के टुकटोले के सोलंकी राजा मूलराज के पुत्र महेसदास लोद्र्वा के पंवार राय सांवत सिंह भांण भोज की पुत्री से विवाह करने के बाद तनोट में आकर बस गए। इनके पुत्र का नाम खेत सिंह था।खेतसिंह की नानी दुलरावती ने लाड़ प्यार से उसे खालच कहा । कालान्तर में ये खालत नाम से प्रसिद्ध हुए।इनके वंशज इस प्रदेश में खालत सोलंकी कहलाये।
खालतो के वंशज
खेतसिंह के पुत्र रूपसिंह के 3 पुत्र हुए।प्रथम पुत्र का नाम देवराज था । देवराज खालत ने एक कुँए का पुननिर्माण करवाया जो पूर्व में विजयराज चुडाला भाटी द्वारा कच्चा बनवाया गया था । जिसे देवराज ने पक्का निर्मित करवाया।
देवराज ने ही मातेश्वरी घंटियाल राय के प्राचीन मन्दिर का निर्माण करवाया जो वर्तमान में जैसलमेर जिले से तनोट जाते समय तनोट से 7 किमी पहले आता है तथा इसे तनोट यात्रा का प्रथम दर्शन भी कहते है।वर्तमान में रामगढ व आसपास के खालत व् बी एस एफ इसकी पूजा करते है।
देवराज खालत के पुत्र का नाम मायथी था।जिसने रामगढ से 6 कोस दूर मायथी नाम से कुएं का निर्माण करवाया।
देवराज खालत के दूसरे पुत्र रतनसिंह ने रातडिया कुँए का निर्माण करवाया।इनके बड़े पुत्र का नाम चासुड़ था। चासुड़ के पुत्र का नाम मांझू था।उस समय सरवरा (स्थान का नाम) के ओढ़ांण नामक व्यक्ति ने इसे मारकर तनोट लूट लिया। मांझू का बेटा बिसलदेव उस समय अपने ननिहाल जसोल(कच्छ) से एक फौज तैयार करके लाया और उसने ओढ़ांण को हराकर सरवरा को लूट लिया तथा विजय निशानी के रूप में सरवरा के किवाड़ अपने साथ लाया।इसने महारावल की साली भोग की रकम जिसे माल कहते है को इकरारनामा में लिख कर दी।
यह कर आजादी से पूर्व तक महारावलो को चुकाते थे।बीसलदेव ने तनोट में चोतीना कुँए (जिसमे एक साथ चार दिशाओ से पानी निकाला जा सके) का निर्माण करवाया।
यह आज भी तनोट में स्थित है।यंही पर इन्होंने एक पगबाव(सीढ़ियों से उतरकर पानी भरने का स्थान) बनाया जिसका पानी खारा होने के कारण इसे आकवाव कहकर इसे बन्द कर दिया।महारावल जैसलमेर की अनुमति से इन्होंने रामगढ़ में एक मजबूत कोट का निर्माण भी करवाया जिसमे आज कल गर्ल्स स्कूल संचालित हो रही है।मांझू के पुत्र भोज ने रामगढ में पांच कुओं का निर्माण करवाया जो भोचरा नाम से प्रसिद्ध थे।
भोज के 12 पुत्र हुऐ जिनमे ज्येष्ठ पुत्र चावड़ के वँशज ' बारू' गांव में रहते है। दूसरे पुत्र माणक ने रणाऊ कुँए का निर्माण करवाया।
माणक के पुत्र भाग चन्द ने रणाऊ से 6किमी दूर भागसर नामक कुँए का निर्माण करवाया।
भोज के तीसरे पुत्र का नाम भारा था अतः इसकी संतान भारा खालत कहलाती है।
चोथे पुत्र सलखानी के बेटे अर्डकमल के सात पुत्र हुए जिनमे से 4 का वंश चला। इसके एक पुत्र सरन ने मुसलमान धर्म स्वीकार कर लिया। जिन्हें खालत मुसलमान भी कहते है।
तीसरे पुत्र की संतान सेउ और सायंत थे। जिनके वंशज आज राघवा सेउवा जोगा भोपा आदि गांव में रहते है।
चौथे पुत्र सरजन की संतान सज्जन खालत कहलाती है। सरजन ने एक तलाई का निर्माण करवाया जिसे सज्जन री तलाई कहा जाता है।ज्येष्ठ पुत्र अजे के 12 पुत्र थे।प्रथम पुत्र जोगे की संतान मालका नामक स्थान पर रहते थे। चोथे पुत्र कोले की संतान रायधन थी। रायधन मोहनगढ़ में रहते थे। दसवें पुत्र गौर की संतान गौर खालत कहलाये।बारहवें पुत्र मीठे की संतान मीठे खालत कहलाये। ग्यारहवें पुत्र खिंये के 9 पुत्र हुए।जिनमे राम की संतान हेमा और नेतसि बिपरासर नामक खडीन के पास रहते है।
पांचवे पुत्र सिधे के वँशज कन्नोद ग्राम में रहते थे।छठे पुत्र सते और वस्ते के वस्तांनी गांव छायण में रहते थे।आठवें पुत्र आंबे की संतान आम्बा खालत कहलाये।
ज्येष्ठ पुत्र भारे के तीन संतान हुई जिसमे सबसे बड़े महेश सिंह व महेश सिंह के भोजराज जो की वर्तमान भोजराज की ढाणी ,रामगढ तथा कई अन्य जगह भी रहते है।
जैसलमेर के उतरी पश्चिमी क्षेत्र के खडाल तथा आसपास के क्षेत्रों में खालत सोलंकी राजपूत लगभग 1000 वर्षों से रह रहे हैं।इनके पूर्वज भोज के टुकटोले के सोलंकी राजा मूलराज के पुत्र महेसदास लोद्र्वा के पंवार राय सांवत सिंह भांण भोज की पुत्री से विवाह करने के बाद तनोट में आकर बस गए। इनके पुत्र का नाम खेत सिंह था।खेतसिंह की नानी दुलरावती ने लाड़ प्यार से उसे खालच कहा । कालान्तर में ये खालत नाम से प्रसिद्ध हुए।इनके वंशज इस प्रदेश में खालत सोलंकी कहलाये।
खालतो के वंशज
खेतसिंह के पुत्र रूपसिंह के 3 पुत्र हुए।प्रथम पुत्र का नाम देवराज था । देवराज खालत ने एक कुँए का पुननिर्माण करवाया जो पूर्व में विजयराज चुडाला भाटी द्वारा कच्चा बनवाया गया था । जिसे देवराज ने पक्का निर्मित करवाया।
देवराज ने ही मातेश्वरी घंटियाल राय के प्राचीन मन्दिर का निर्माण करवाया जो वर्तमान में जैसलमेर जिले से तनोट जाते समय तनोट से 7 किमी पहले आता है तथा इसे तनोट यात्रा का प्रथम दर्शन भी कहते है।वर्तमान में रामगढ व आसपास के खालत व् बी एस एफ इसकी पूजा करते है।
मातेश्वरी घंटियाल राय का मंदिर |
गज सिंह जाम का गांव स्थित माता का मंदिर |
देवराज खालत के पुत्र का नाम मायथी था।जिसने रामगढ से 6 कोस दूर मायथी नाम से कुएं का निर्माण करवाया।
रामगढ से 6 कोस दूर स्थित मायथी जी की छत्तरी |
यह कर आजादी से पूर्व तक महारावलो को चुकाते थे।बीसलदेव ने तनोट में चोतीना कुँए (जिसमे एक साथ चार दिशाओ से पानी निकाला जा सके) का निर्माण करवाया।
तनोट स्थित चोतीनाकुआँ |
भोज के 12 पुत्र हुऐ जिनमे ज्येष्ठ पुत्र चावड़ के वँशज ' बारू' गांव में रहते है। दूसरे पुत्र माणक ने रणाऊ कुँए का निर्माण करवाया।
रणाऊ गांव |
भोज के तीसरे पुत्र का नाम भारा था अतः इसकी संतान भारा खालत कहलाती है।
चोथे पुत्र सलखानी के बेटे अर्डकमल के सात पुत्र हुए जिनमे से 4 का वंश चला। इसके एक पुत्र सरन ने मुसलमान धर्म स्वीकार कर लिया। जिन्हें खालत मुसलमान भी कहते है।
तीसरे पुत्र की संतान सेउ और सायंत थे। जिनके वंशज आज राघवा सेउवा जोगा भोपा आदि गांव में रहते है।
चौथे पुत्र सरजन की संतान सज्जन खालत कहलाती है। सरजन ने एक तलाई का निर्माण करवाया जिसे सज्जन री तलाई कहा जाता है।ज्येष्ठ पुत्र अजे के 12 पुत्र थे।प्रथम पुत्र जोगे की संतान मालका नामक स्थान पर रहते थे। चोथे पुत्र कोले की संतान रायधन थी। रायधन मोहनगढ़ में रहते थे। दसवें पुत्र गौर की संतान गौर खालत कहलाये।बारहवें पुत्र मीठे की संतान मीठे खालत कहलाये। ग्यारहवें पुत्र खिंये के 9 पुत्र हुए।जिनमे राम की संतान हेमा और नेतसि बिपरासर नामक खडीन के पास रहते है।
बिपरासर तालाब |
ज्येष्ठ पुत्र भारे के तीन संतान हुई जिसमे सबसे बड़े महेश सिंह व महेश सिंह के भोजराज जो की वर्तमान भोजराज की ढाणी ,रामगढ तथा कई अन्य जगह भी रहते है।