सिद्धराव जय सिंह सौलंकी

सिद्धराव जय सिंह सौलंकी
सिद्धराव जय सिंह सौलंकी

शनिवार, 25 जून 2016

सोलंकियों की कुलदेवी से सम्बंधित जानकारी


श्री खमंजा राय देई जिला बूंदी



'सोलंकीयों कि कुल देवी श्री खेंवज माताकुछ समय से सोशल नेटवर्क पर सोलंकीयों कि कुलदेवी माता खेंवज के मुख्य स्थान के रूप में भीनमाल ( जालौर ) स्थित मंदिर को प्रस्तुत किया जा रहा है , वास्तव मे माता खेंवज का मूल मंदिर बुंदी जिले की नैनवाँ तहसील मेस्थित देई ग्राम है ।बडवा जी की पोथी से जानकारी मिलती है कि पिढीयों से इस स्थान पर आकर माता खेंवज का आशिर्वाद सोलंकीयों व्दारा प्राप्त किया जाता रहा है।यहाँ के पुजारी जी (राम सिंह जी पाराशर ) से जानकारी लेने पर पता करने पर उन्होंने बताया कि जब सन् 1995 में देई में एक विशाल यज्ञ हुआ था, उसमें देश के सभी जगहों से माता के भक्त शामिल हुए थे उन्हीं में से भीनमाल के साहुकार परिवार के एक बुजुर्ग भी आये थे उन्होंने ही वापस जाकर भीनमाल के मंदिर का निर्माणकरवाया ।रिसर्चरस ने भी इस स्थान को 1100 साल प्राचीन होना प्रमाणित किया है।आप लोगों के लीए मंदिर कि संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत है -विक्रम संवत 1010 में मुलराज जी द्वारा मंदिर का निर्माण करवाया गया ।विक्रम संवत 1020 में बावडी का निमार्ण करवाया।संवत 1552 मे सिध्दराज जी द्वारा मंदिर का विस्तार करवाया ।विक्रम संवत 1340 मे टोडा के महाराजा गोविंदराज जी ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया ओर परकोटे का निर्माण करवाया।2500 बीघा जमीन पर खांखरे ओर खेर के पोधे लगवाकर माता जी बनी घोषित कि ।मंदिर मे श्री नागर माता श्री भेवंज माता ओर श्री खेंवज माता कि मूर्तीयां विराजमान हैं ।खेंवज माता ओर भेवंज माता के बीच महीपाल पुत्र जी ( मोरपतर जी ) की मुर्ती है जिस पर पर्दा लगा रहता है इनके दर्शन सोलंकी राजपूतों को ही करवाये जाते हैं ।मंदिर के सामने चौक मे सात शेरों कि मूर्तीयां बनी हुई है ।मंदिर परिसर मे बटुक भैरव, सिध्द गणेश कि छतरीयाँ बनी हुईं हैं ।पिछले भुतेश्वर महादेव का छोटा गुम्बद वाला मंदिर बना हुआ है।
।। जय माँ खेंवज ।।

मंगलवार, 14 जून 2016

भैरई गांव के सोलंकियों का वंश वृक्ष

भैरई गांव के सोलंकियों का वंश वृक्ष


साभार
वीरेंद्र सिंह सोलंकी

सोलंकी वंश शाखा गोत्र

  सोलंकी राजचिन्ह
सोलंकी वंश का गोत्र-प्रवरादि

राजधानी -अन्हिलवाड़ पाटन

कुलदेवी - खींवज

व्रक्ष -खाखरो

नदी -जमना

चारण- हडियों

नगाड़ा- रणजीत

कुलदेव- सोमनाथ

गोत्र -भारद्वाज

वंश -अग्निवंश

वेद -यजुर्वेद

ऋषि- वशिष्ठ

उत्पत्ति -अग्निकुंड

डंका -कदम

अश्व -पंचकल्याणी

तम्बू -भगवा

निशान -पंचरंगी

ध्वज -लाल

मंगलवार, 7 जून 2016

शेरबहादुर सिंह


जैसलमेर का वह भाग जो नक्शे में पाकिस्तान की और धँसा दिखता है, वास्तव में एक व्यक्ति के दुस्साहस का परिणाम है। विभाजन की रेडक्लिफ रेखा के अनुसार वर्तमान सारा नहरी क्षेत्र पाकिस्तान में जाने वाला था किन्तुजब सीमांकन हेतु अधिकारी इधर आए तो एक व्यक्ति ने तलवार निकाल ली और इस दुर्गम क्षेत्र से उनका वापस निकलना मुश्किल हो गया।आखिर निर्णय हुआ कि इन "बाऊ जी" के पशु जितने क्षेत्र में चरते है वह सारा इलाका भारत में ही रहेगा।इस प्रकार सीमा रेखा, वर्तमान रामगढ़ से खिसक कर तनोट के उस पार तक चली गई और भारत को हजारों वर्गकिमी भूभाग मिला।उन दिनों इस वीरान रेगिस्तान को सम्भालना मुश्किल काम था सो पाकिस्तान ने भी कोई विरोध नहीँ किया।यह घटना भुटो वाली चौकी के पास की है। सम्बंधित अंग्रेज अधिकारी ने इस घटना को अपनी डायरी में लिखा है और दिल्ली संग्रहलाय में कहीँ सुरक्षित बताई जाती है।उस व्यक्ति का नाम था लिच्छि सिंह। पर अधिकारी ने उसकी बहादुरी देखकर उसे शेर बहादुर सिंह नाम दिया था।शेरसिंह के तेजो जनित विक्षोभ से प्रभावित होने से सीमारेखा उत्तर पश्चिम को मुड़ गई और शाहगढ़, तनोट, सेउवावाला, राघवातला, जोगवाला आदि भूभाग भारत को मिला।अधिकारी समझ गए थे, कि यदि यहाँ जनसंख्या रखनी है तो पशुपालन करना पड़ेगा और उस हेतु यह मरु कुँए इनके पास रहने चाहिए।खालतोंके12 गाँव पाकिस्तान जाने से बच गए।और बड़े मजे से पशुपालन के सहारे वे जी भी रहे थे।पर कालान्तर में नहर आने से यह गोचर भूमि सिकुड़ती चली गई। सारा आवंटन लेन देन और मनमर्जी के खेल में फंस गया। पशु मरे, भूमि सिकुड़ी, नहरी जमीन पर बाहर के लोग आकर बस गए।क्या कोई अरुणा राय या महाश्वेता देवी, इस विस्थापन के लिए आवाज उठाएगी?हजारों वर्गकिमी भूमि कभी जिनके पैरों तले थी वे आज सरकारी फाइलों के सामने कतार बांधे, भिखारी बन खड़े है।‪#‎kss
साभार केसरीसिंह सूर्यवंशी

शनिवार, 4 जून 2016

गुजरात के सोलंकी

गुजरात के सोलंकी वंश का संस्थापक मूलराज प्रथम था। उसने अन्हिलवाड़ को अपनी राजधानी बनाया था। मूलराज ने 942 से 995 ई. तक शासन किया। 995 से 1008 ई. तक मूलराज का पुत्र चामुण्डाराय अन्हिलवाड़ का शासक रहा। उसके पुत्र दुर्लभराज ने 1008 से 1022 ई. तक शासन किया। दुर्लभराज का भतीजा भीम प्रथम अपने वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था।

स्वर्णिम इतिहास

गुजरात के शक्तिशाली शासकों में भीम प्रथम ने कलचुरी नरेश कर्ण के साथ मिलकर धारा के परमार वँश के भोज के विरुद्ध एक संघ तैयार किया, जिसने भोज को पराजित किया। जैन ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि उसने कर्ण को भी पराजित किया था।महमूद गजनवी के सोमनाथ मंदिर ध्वस्त कर चले जाने के पश्चात भी उसने मन्दिर का पुननिर्माण करवाया। उसके सामंत विमल ने आबू का दिलवाड़ा का प्रसिद्ध मंदिर बनवाया था। गुजरात के सभी सोलंकी वंशी शासक जैन धर्म के संरक्षक तथा पोषक थे। भीम प्रथम के शासन काल में लगभग 1025-26 में महमूद ग़ज़नवी ने सोमनाथ के मंदिर पर आक्रमण कर लूट-पाट की। भीम प्रथम के लड़के कर्ण ने 1064 से 1094 ई. तक शासन किया। अपने शासन काल में उसका नाडौल के चौहान एवं मालवा के परमारो से युद्ध हुआ था।

जयसिंह (1094 से 1153 ई.)

कर्ण के लड़के एवं उत्तराधिकारी जयसिंह ने सिद्धराज की उपाधि धारण कर किया। वह सोलंकी वंश का सर्वाधिक योग्य प्रतापी राजा था। उसके राज्य की सीमायें पश्चिम में कठियावाड़ तथा गुजरात, पूर्व में भिलसा मध्यप्रदेश और दक्षिण में बलि क्षेत्र एवं सांभर तक फैली थी। जयसिंह के राजदरबार में प्रसिद्ध आचार्य (जैन) हेमचन्द रहते थे।

कुमारपाल (1153 से 1172 ई.)

  • जयसिंह के पुत्र कुमार पाल ने मालवा नरेश बल्लार, चौहान शासक अर्णोराज एवं परमार शासक विक्रम सिंह को परास्त किया।
  • अजय पाल के लड़के मूलराज द्वितीय ने 1178 ई. में आबू पर्वत की समीप कुतुबुद्दिन को परास्त कर दिया।
  • भीमदेव-द्वितीय के एक मंत्री लवण प्रसाद ने गुजरात 'बघेल वंश' की स्थापना की।