सिद्धराव जय सिंह सौलंकी

सिद्धराव जय सिंह सौलंकी
सिद्धराव जय सिंह सौलंकी

मंगलवार, 7 जून 2016

शेरबहादुर सिंह


जैसलमेर का वह भाग जो नक्शे में पाकिस्तान की और धँसा दिखता है, वास्तव में एक व्यक्ति के दुस्साहस का परिणाम है। विभाजन की रेडक्लिफ रेखा के अनुसार वर्तमान सारा नहरी क्षेत्र पाकिस्तान में जाने वाला था किन्तुजब सीमांकन हेतु अधिकारी इधर आए तो एक व्यक्ति ने तलवार निकाल ली और इस दुर्गम क्षेत्र से उनका वापस निकलना मुश्किल हो गया।आखिर निर्णय हुआ कि इन "बाऊ जी" के पशु जितने क्षेत्र में चरते है वह सारा इलाका भारत में ही रहेगा।इस प्रकार सीमा रेखा, वर्तमान रामगढ़ से खिसक कर तनोट के उस पार तक चली गई और भारत को हजारों वर्गकिमी भूभाग मिला।उन दिनों इस वीरान रेगिस्तान को सम्भालना मुश्किल काम था सो पाकिस्तान ने भी कोई विरोध नहीँ किया।यह घटना भुटो वाली चौकी के पास की है। सम्बंधित अंग्रेज अधिकारी ने इस घटना को अपनी डायरी में लिखा है और दिल्ली संग्रहलाय में कहीँ सुरक्षित बताई जाती है।उस व्यक्ति का नाम था लिच्छि सिंह। पर अधिकारी ने उसकी बहादुरी देखकर उसे शेर बहादुर सिंह नाम दिया था।शेरसिंह के तेजो जनित विक्षोभ से प्रभावित होने से सीमारेखा उत्तर पश्चिम को मुड़ गई और शाहगढ़, तनोट, सेउवावाला, राघवातला, जोगवाला आदि भूभाग भारत को मिला।अधिकारी समझ गए थे, कि यदि यहाँ जनसंख्या रखनी है तो पशुपालन करना पड़ेगा और उस हेतु यह मरु कुँए इनके पास रहने चाहिए।खालतोंके12 गाँव पाकिस्तान जाने से बच गए।और बड़े मजे से पशुपालन के सहारे वे जी भी रहे थे।पर कालान्तर में नहर आने से यह गोचर भूमि सिकुड़ती चली गई। सारा आवंटन लेन देन और मनमर्जी के खेल में फंस गया। पशु मरे, भूमि सिकुड़ी, नहरी जमीन पर बाहर के लोग आकर बस गए।क्या कोई अरुणा राय या महाश्वेता देवी, इस विस्थापन के लिए आवाज उठाएगी?हजारों वर्गकिमी भूमि कभी जिनके पैरों तले थी वे आज सरकारी फाइलों के सामने कतार बांधे, भिखारी बन खड़े है।‪#‎kss
साभार केसरीसिंह सूर्यवंशी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें