हजार सिंह जी जाम |
पाकिस्तान से लगती सीमा से सटे जैसलमेर के तनोट क्षेत्र के घन्टियाली माता मंदिर के निकट उन दिनों मुसलमानों की एक ढाणी हुआ करती थी !...उस ढाणी में अला-ताला द्वारा फुरसत से बनाई हुई एक हसीन मोहतरमा से अपने काठोड़ी गाँव के एक पड़िहार सरदार इश्क फरमा बैठे ...चोरी -चुपके मुलाकातें होने लगी आखिर मुलाकातों का यह दौर उस समय थमा जब पड़िहार सा रंगे हाथों धरे गये ....परिणामस्वरूप उनको मोहतरमा से निकाह कर जान बचानी पड़ी ....उस सरदार ओर मोहतरमा के इश्क का परिणाम था उनका बेटा -सच्चू .!वह खुद भी अपने आपको पड़िहार मुस्लिम कहता था .....बड़ा दुष्ट प्रवृति का था ....अपने भांजे के साथ चल पड़ा इशावल (गज सिंह जाम का कुआँ) के पास "तला" (कुआँ) खोदने के लिए जो की खालत सरदारों की भूमि थी ....यह सुनते ही आस पास के सभी खालतो सरदारों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया ...विरोध के कारण वह तला नहीँ बना सका ....बाद में वह जैसलमेर कलेक्टर से अनुमति लेकर ...गाजे -बाजे के साथ रामगढ़ के निकट से गुजरा .....सचु के साथ उसका भांजा मियल भी था .....
जाम हजारसिंह जी उन दिनों जैसलमेर तहसील में ऊँट .सवार थे ....वीरता ओर साहस की मिसाल थे ...उनको जब इसकी ख़बर मिली तो उनका खून खौल उठा ......उसी समय वो निकल पड़े ...हजार सिंह जाम के साथ सोहन सिंह सोलंकी रामगढ और एक नेतसी गांव के सोलँकी सरदार भी थे ।
"सुरविं डहरी मायथि री,सचु मियल साथ
सड़फ पुगो नर सोनडो,हजार सिंह बताया हाथ"
जब सच्चू बिना माने लड़ने पर आतुर हो गया ....तो इस शेर ने अदम्य साहस के साथ रामगढ से सात कोस दूर स्थित माइथी जी की डहरी(स्थान का नाम) के पास लड़ते हुए उन दोनों का काम वहीँ पर तमाम कर दिया ...
उस समय उनका नाम मात्र सुनकर विधर्मी अपनी पतलून गीली कर देते थे .... इनके ख़ौफ़ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब इनका निधन हुआ तब पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में विधर्मियों ने ढोल बजाकर,गुड़ बांटकर खुशियाँ मनाई थी.... हजार सिंह तो यह विष-बेल पनपने ही नहीँ देना चाहते थे....
... ....जिस भूमि को बचाने के लिये हजार सिंह जी ,,शेर बहादुर सिंह जी आदि ने तलवारें उठाई ...जो कभी उनके पैरों तले थी ...आज नहर आने के बाद सरकारी आवंटन के खेल में .... ...बाहरी लोग कब्जा कर रहे है ..ओर फाईलो की कतार में हम सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे है ......
साभार- लाल सिंह जी राघवा