सिद्धराव जय सिंह सौलंकी

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सिद्धराव जय सिंह सौलंकी

शनिवार, 9 जुलाई 2016

बहादुरी के पर्याय माना और शंकर

रामगढ-तनोट सड़क मार्ग पर स्थित जुझार माना, शंकर के थान

दूर से किले की भव्यता को देख वे चकित रह जाते है | पीले पत्थर पर पड़ती रश्मियाँ स्वरण दुर्ग का आभास दे रही है | निनानवें बुर्जों व् विशाल ऊँचा व् भव्य दुर्ग आकाश में सर उठाये किसी आकर्षक योद्धा की तरह खड़ा है | दूर से घर आ रही मवेशियों से धूल की चादर तन आई थी | यह चादर किले से नीचे शहर को ढके हुए थी | इस चादर पर साँझ के चूल्हों का धूंआ तैर रहा था | किले के कोटरों से कबूतरों के झुण्ड अविकल उड़ाने भर रहे थे | धूल और धुंए की छत के पार ऊपर देखने पर लगता था जैसे किले और हवेलियों के सर आकाश में गुम हो गए है...इसी दुर्ग के पूर्वी द्वार अखे प्रोल् के पहरेदार थे ....माना और शंकर ...!माना और शंकर बीदा और जाम खालतौ के पूर्वज थे ...वीरता और साहस में उनका कोई सानी नहीँ था ..वे जैसलमेर दरबार के सबसे कुशल और प्रिय पहरेदार थे ....उनकी वीरता का उदाहरण बीकानेर के साथ हुए युद्ध में मिलता है ...उदयपुर में महाराज गजसिंह जी के अपमान का परिणाम था यह युद्ध ....इस युद्ध में इन दोनों रणबांकुरे अपनी युद्ध कौशल से दुश्मनों के दाँत खट्टे करते हुए शत्रु सेना को कई कोसों दूर तक खदेड़ते हुए अपने महाराज के अपमान का बदला लेते है ..उनजेसे बहादुरों के साहस की बदौलत यह युद्ध जैसलमेर जीत जाता है ...
उनकी वीरता से प्रसन्न होकर महाराज उनको जागीर देते है .....कुछ समय बाद जब मियॉं खालतौ के गाँव में मुस्लिम आक्रमण होता है तो ये दोनों वीर अपने भाइयों की रक्षा के लिये अदम्य साहस के साथ दुश्मनों का मुकाबला करते है ...इस बीच माना को गोली भी लग जाती है ....और प्रतिशोध की ज्वाला में दहक रहे शंकर ने अकेले एक साथ कई शत्रुओं के सिर धड़ अलग किये और गाँव की रक्षा की ..धन्य है इस रेगिस्तान की मिट्टी में जन्मे ऐसे वीर !
रामगढ़ और जैसलमेर में बनी माना और शंकर की हवेलिया आज भी उनकी वीरता की प्रेरणा देती है .....

साभार- लाल सिंह जी राघवा

4 टिप्‍पणियां:

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  2. जय सिद्ध सोलंकी महाराज की 🙏 ऐसे शूरवीरों की गाथाओं पर हमें नाज़ है,सोलं सोलंकियों का इतिहास अद्भुत गौरवशाली है, कालांतर में सत्ता लोलुपों की वजह
    से सोलंकी सत्ता से जानबूझ कर दूर कर दिए गए तथा कंगूरो की ही बातें बताई व लिखी जाने लगीं।आपका प्रयास सराहनीय है और हमें आप पर नाज है 🙏🙏

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  3. मुझे सोलंकी वंश का होने पर गर्व है। मेरे पूर्वजों के गौरवशाली इतिहास पर भारत को गर्व होगा ही। परम गौ भक्त बच्छराज जी, झाला वंश की जन्म दात्री और पीपा जी महाराज की सहचरी सीता जैसी देवियों का इतिहास हमें निरंतर प्रेरणा देता है। जय क्षेमंकरी माता।

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