सिद्धराव जय सिंह सौलंकी

सिद्धराव जय सिंह सौलंकी
सिद्धराव जय सिंह सौलंकी

बुधवार, 14 सितंबर 2016

सोलँकी राजवंश की टोडा रियासत



टोडा रियासत-
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टोडा रियासत पर, समय - समय पर कई राजवंशो की राजधानी रह चूका है जैसे परमार, चौहान, सोलंकी, मुस्लिम, सिसोदिया जैसे राजवंशो ने राज किया था | सबसे लम्बा राज्य सोलंकी वंश का यहाँ पर रहा है 1303 से लेकर 1650 के लगभग का माना जाताहै | 15 वी और 16 वी शताब्दी में टोडा सोलंकियों की राजधानी भी रह चूका है | सोलंकी वंश के समय टोडा नगरी में बहुत से एतिहासिक स्थल बनाये गए जिनका साक्ष्य आज भी टोडा - टोंक गवाह दे रहा है | यह पर एक से बढ़कर एक योद्धाओ ने जनम लिया ना सिर्फ राजपूतो ने युद्धभूमि में अपनी तलवार बजायी बल्कि ताराबाई सोलंकी जैसी क्षत्रनियों ने भी अपनी जनम भूमि टोडा के लिए युद्ध के मैदान में तलवार बजायी है आज टोंक का हर स्थम्भ, नदियाँ, मंदिर, महल, बावड़ियाँ, छतरियां, तालाब , रुसी रानी महल (जो रानी रूठ जाति थी तो कुछ देर वो इस महल में एकांत में चली जाति थी ) इत्यादि सोलंकी वंश का खुला प्रमाण देते है | यहाँ पर किल्हनदेव, रूपवाल, डूंगर सिंह, राजकुमारी ताराबाई, कल्याण सिंह, जगन्नाथ सिंह, राव सुरतान सिंह जैसे योद्धाओ ने ना सिर्फ सोलंकी वंश की आन, बाण, शान को कायम रखा बल्कि समस्त हिन्दुत्व की रक्षा की अपनी मात्र भूमि की समय-समय पर रक्षा हेतु हसते- हसते बलिदान दे दिया | आओ हम बात करते है उस समय की जब टोडा में चित्तोड़गढ़ जैसा भीषणनर - संहार हुआ अकबर और मान सिंह द्वारा|मान सिंह और अकबर के सेनापतियों ने मेवाड और मारवाड जैसी बड़ी से बड़ी राजपूती रियासते जीत ली उसके बाद अकबर का होसला और बढ़ गया था | तब उसने सोचा की अब जो बची हुई छोटी – छोटी रियासते है उनके राजाओ को आगरा बुलाकर मेवाड का कत्ले आम और मुग़ल सल्तनत की तेज गति से फ़ैल रहे राज्य बताये जाए और सभी छोटी और बड़ी रियासत के राजा को मुस्लिमो की ताक़तबताई जाए अकबर ने सभी छोटी – छोटी रियासतों के राजाओ को मैत्री का पत्र (दोस्ती का प्रताव ) लिखा और अपने सेनापतियों द्वारा भिजवा दिए थे उनमे से एक थी टोंक रियासत इस समय यहाँ के राजा थे राव जगन्नाथ सिंह सोलंकी जो की बहुत बुद्धिमान, वीर, चतुर, हर कला में निपूर्ण उनके बड़े पुत्र कुंवर कल्याण सिंह जी थे | कुंवर कल्याण सिंह जी भी अपने पिता की तरह समझदार, बुद्धिमान, वीर, और चतुर थे |यह वो रियासत है जिसे अकबर का सेनापति और मान सिंह कछवाह नहीं जीत पाया था | तब अकबर ने मानसिंह से पूछा क्या - इतना ताक़तवर है टोंक रियासत की हमारी मुग़ल सल्तनत के बहादूर योद्धा भी उसे हमारी सल्तनत का हिस्सा नहीं बना पाए तो मान सिंह ने भी अपना सर नीचे कर लिया और कोई जवाब नहीं दे सका वो थी टोडा रियासत, जिला - टोंक | टोडा महल की एक और बड़ा तालाब तो दूसरी और घना जंगल और ऊँची-ऊँची पहाड़िया है | उन पहाड़ियों से दूर बेठा दुश्मन भी नज़र आ जाता है | उस समय यहाँ के राव जगन्नाथ सिंह थे | टोडा राव जगन्नाथ सिंह जी को कहीं पर भी आना जाना कम पसंद था इस लिए उनके पुत्र कुंवर कल्याण सिंह सोलंकी राज्य का मेल – मुटाव से लेकर हर कार्य खुद करते थे कुंवर कल्याण सिंह जी एक बहादूर, समझदार, चतुर, थे इस लिए उनके पिता राव जगन्नाथ सिंह जी ने अपना सारा कार्य उनके पुत्र कुंवर कल्याण सिंह जी करते थे | अकबर के सेनापति और मान सिंह ने पूरी कोशिश कर ली मगर टोंक को नहीं जीत पाए |आखिर में अकबर ने टोंक को दोस्ती करने हेतु राव जगन्नाथ सिंह जी को पत्र लिखा गया ( यह आप अभी चल रहे महाराणा प्रताप एपिसोड 462-463 देखें ) लेकिन राव जगन्नाथ जी के पुत्र कुंवर कल्याण सिंह जी वार्तालाप हेतु जाते है कुंवर कल्याण सिंह जी के साथ दो राज्य गोलुन्दा और बीजापुर के राजा भी रहते है| उस समय टोडा के कुंवर कल्याण सिंह जी ने अकबर के सामने अपना प्रताव रखा की हम अकबर को अपना मित्र कैसे मान ले, जबकि आमेर के राजा भारमल जी भी उनके साथ मित्रता करने आये थे और तुमने उनकी ही बेटी से शादी कर ली, चित्तोडगढ में अभी हाल ही में हुआ भीषण नर - संघार किया गया| हम कैसे मान ले की हमारी आन, बाण, शान के साथ अकबर नहीं खेलेगा तभी अकबर ने उन दो वीरो जयमल मेडतिया और पत्ता चुण्डावत की आगरा में जो मुर्तिया बनवाई तीनो राजाओ को दिखाई और यह कहाँ की अब (दिखावेके लिए बनायीं गयी मुत्रिया बताई ताकि राजपूत राजाओ को लगे की अब अकबर किसी तरह का रक्तपात नहीं चाहता है ) और यह सिद्ध किया की अब वो किसी राजपूत की आन, बाण, शान से नहीं खेलेगा और बिना युद्ध किये ही बाकी राजपूत राजाओ को अपना मित्र बनाकर मुग़ल सल्तनत को फैलाना चाहता था | बिना किसी का नुकशान हुए ही एकता का सूत्रधार का नाटक कर टोंक, गोलुन्दा, और बीजापुर के राजाओ को दिखाईऔर अपने झूठे जास्से देकर अपना मित्र बना लिया | लेकिन फिर भी यह मित्रता मुगलों और टोंक के सोलंकियों के बीच ज्यादा देर नहीं रही |जिस समय कुंवर कल्याण सिंह जी अपनी बहिनका रिश्ता लेकर आमेर गए तब वो आमेर में अपने कक्ष (कमरे) में बेठे-बेठे चित्र बना रहे थे तब काली स्याही का एक धब्बा कुंवर कल्याण सिंह के कुरते पर गिर गया जब चित्रकला कर के वो कक्ष से बाहर आये तो मान सिंह द्वारा सोलंकी वंश पर टिपणीकी गयी “अब तो सोलंकियों के भी काला लग गया” यह कुंवर कल्याण सिंह जी को सही नहीं लगा तब, कुंवर कल्याण सिंह सोलंकी ने टिपण्णी की “यह तो स्याही का धब्बा हैधोने से साफ़ हो जायेगा, लेकिन अपने तो अपने घर की बेटी मुगलों को दी है वो कालाकैसे धुलेगा” और कुंवर कल्याण सिंह जी आमेर से टोंक वापस आ गए तब मान सिंह ने अकबर का सहारा लिया और सोलंकियों की रियासत टोडा पर हमला कर दिया रात के घने अँधेरे में जब चाँद बादलो के पीछे छीप जाता तब मुग़ल सैनिक उस अँधेरे की आड़ लेकर आगे बढ़ते और इसी तरह वो लोग धीरे-धीरे महल के नजदीक पहुच गए | उस समयअकबर खुद अपनी सेना का नेत्रत्व कर रहा था और मान सिंह के साथ आया था लेकिन टोडाराव जगन्नाथ सिंह जी बहुत चतुर और एक वीर योद्धा थे | उन्होंने पहले ही अपने राजपरिवार के सभी बाल-बुजुर्गो को महल से बाहर भेज दिया था और अपने सैनिको को पहाड़ पर निगरानी हेतु खड़ा कर दिया लेकिनअँधेरे की आड़ से कोई नज़र नहीं आया और कब मुग़ल सेना महल के करीब पहुची इसकी भनक भी नहीं लगी किसी को तब मान सिंह ने जोर से हुक्नार भरते हुए कुंवर कल्याण सिंह सोलंकी को कहाँ "आप अपनी जिस लड़की की शादी मुझसे करवा रहे थे अब उसे बादशाह अकबर के साथ विवाह कराओ या फिर हमसे युद्ध करो" | तब कुंवर कल्याण सिंह जी ने युद्ध करना उचित समझा और देखते ही देखतेरात भर में हजारो मुगलों के बीच में सेकेडो की संख्या में सोलंकी राजपूत सैनिको ने लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की | यह घटना महाराणा प्रताप के जंगलो में भटक रहे थे तब की है |सोलंकियों के समय यह राज्य सांभर, मांडलगढ़, नैनवा, नागौर, जालोर दही, इंदौर, मालवा, गुजरात का कुछ भाग, तक सोलंकियों का राज्य फैला हुआ था | 1303 से लेकर 1650 इसवी तक यहाँ सोलंकियों काराज्य कायम रहा और 15वी तथा 16वी शताब्दी तक यह राज्य सोलंकियों की राजधानी बना रहा।

शनिवार, 9 जुलाई 2016

हजार सिंह जाम

हजार सिंह जी जाम


पाकिस्तान से लगती सीमा से सटे जैसलमेर के तनोट क्षेत्र के घन्टियाली माता मंदिर के निकट उन दिनों मुसलमानों की एक ढाणी हुआ करती थी !...उस ढाणी में अला-ताला द्वारा फुरसत से बनाई हुई एक हसीन मोहतरमा से अपने काठोड़ी गाँव के एक पड़िहार सरदार इश्क फरमा बैठे ...चोरी -चुपके मुलाकातें होने लगी आखिर मुलाकातों का यह दौर उस समय थमा जब पड़िहार सा रंगे हाथों धरे गये ....परिणामस्वरूप उनको मोहतरमा से निकाह कर जान बचानी पड़ी ....उस सरदार ओर मोहतरमा के इश्क का परिणाम था उनका बेटा -सच्चू .!वह खुद भी अपने आपको पड़िहार मुस्लिम कहता था .....बड़ा दुष्ट प्रवृति का था ....अपने भांजे के साथ चल पड़ा इशावल (गज सिंह जाम का कुआँ) के पास   "तला" (कुआँ) खोदने के लिए जो की खालत सरदारों की भूमि थी ....यह सुनते ही आस पास के  सभी खालतो सरदारों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया ...विरोध के कारण वह तला नहीँ बना सका ....बाद में वह जैसलमेर कलेक्टर से अनुमति लेकर ...गाजे -बाजे के साथ रामगढ़ के निकट से गुजरा .....सचु के साथ उसका भांजा मियल भी था .....

जाम हजारसिंह जी उन दिनों जैसलमेर तहसील में ऊँट .सवार थे ....वीरता ओर साहस की मिसाल थे ...उनको जब इसकी ख़बर मिली तो उनका खून खौल उठा ......उसी समय वो निकल पड़े  ...हजार सिंह जाम के साथ सोहन सिंह सोलंकी रामगढ और एक नेतसी गांव के सोलँकी सरदार भी थे ।


"सुरविं डहरी मायथि री,सचु मियल साथ
सड़फ पुगो नर सोनडो,हजार सिंह बताया हाथ"


जब सच्चू बिना माने लड़ने पर आतुर हो गया ....तो इस शेर ने अदम्य साहस के साथ रामगढ से सात कोस दूर स्थित माइथी जी की डहरी(स्थान का नाम)  के पास लड़ते हुए उन दोनों का काम वहीँ पर तमाम कर दिया ...
 उस समय उनका नाम मात्र सुनकर विधर्मी अपनी पतलून गीली कर देते थे .... इनके ख़ौफ़ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब इनका निधन हुआ तब  पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में विधर्मियों ने ढोल बजाकर,गुड़ बांटकर खुशियाँ मनाई थी.... हजार सिंह तो यह विष-बेल पनपने ही नहीँ देना चाहते थे....
... ....जिस भूमि को बचाने के लिये हजार सिंह जी ,,शेर बहादुर सिंह जी आदि ने तलवारें उठाई ...जो कभी उनके पैरों तले थी ...आज नहर आने के बाद सरकारी आवंटन के खेल में .... ...बाहरी लोग कब्जा कर रहे है ..ओर फाईलो की कतार में हम सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे है ......

साभार- लाल सिंह जी राघवा

बहादुरी के पर्याय माना और शंकर

रामगढ-तनोट सड़क मार्ग पर स्थित जुझार माना, शंकर के थान

दूर से किले की भव्यता को देख वे चकित रह जाते है | पीले पत्थर पर पड़ती रश्मियाँ स्वरण दुर्ग का आभास दे रही है | निनानवें बुर्जों व् विशाल ऊँचा व् भव्य दुर्ग आकाश में सर उठाये किसी आकर्षक योद्धा की तरह खड़ा है | दूर से घर आ रही मवेशियों से धूल की चादर तन आई थी | यह चादर किले से नीचे शहर को ढके हुए थी | इस चादर पर साँझ के चूल्हों का धूंआ तैर रहा था | किले के कोटरों से कबूतरों के झुण्ड अविकल उड़ाने भर रहे थे | धूल और धुंए की छत के पार ऊपर देखने पर लगता था जैसे किले और हवेलियों के सर आकाश में गुम हो गए है...इसी दुर्ग के पूर्वी द्वार अखे प्रोल् के पहरेदार थे ....माना और शंकर ...!माना और शंकर बीदा और जाम खालतौ के पूर्वज थे ...वीरता और साहस में उनका कोई सानी नहीँ था ..वे जैसलमेर दरबार के सबसे कुशल और प्रिय पहरेदार थे ....उनकी वीरता का उदाहरण बीकानेर के साथ हुए युद्ध में मिलता है ...उदयपुर में महाराज गजसिंह जी के अपमान का परिणाम था यह युद्ध ....इस युद्ध में इन दोनों रणबांकुरे अपनी युद्ध कौशल से दुश्मनों के दाँत खट्टे करते हुए शत्रु सेना को कई कोसों दूर तक खदेड़ते हुए अपने महाराज के अपमान का बदला लेते है ..उनजेसे बहादुरों के साहस की बदौलत यह युद्ध जैसलमेर जीत जाता है ...
उनकी वीरता से प्रसन्न होकर महाराज उनको जागीर देते है .....कुछ समय बाद जब मियॉं खालतौ के गाँव में मुस्लिम आक्रमण होता है तो ये दोनों वीर अपने भाइयों की रक्षा के लिये अदम्य साहस के साथ दुश्मनों का मुकाबला करते है ...इस बीच माना को गोली भी लग जाती है ....और प्रतिशोध की ज्वाला में दहक रहे शंकर ने अकेले एक साथ कई शत्रुओं के सिर धड़ अलग किये और गाँव की रक्षा की ..धन्य है इस रेगिस्तान की मिट्टी में जन्मे ऐसे वीर !
रामगढ़ और जैसलमेर में बनी माना और शंकर की हवेलिया आज भी उनकी वीरता की प्रेरणा देती है .....

साभार- लाल सिंह जी राघवा

शनिवार, 25 जून 2016

सोलंकियों की कुलदेवी से सम्बंधित जानकारी


श्री खमंजा राय देई जिला बूंदी



'सोलंकीयों कि कुल देवी श्री खेंवज माताकुछ समय से सोशल नेटवर्क पर सोलंकीयों कि कुलदेवी माता खेंवज के मुख्य स्थान के रूप में भीनमाल ( जालौर ) स्थित मंदिर को प्रस्तुत किया जा रहा है , वास्तव मे माता खेंवज का मूल मंदिर बुंदी जिले की नैनवाँ तहसील मेस्थित देई ग्राम है ।बडवा जी की पोथी से जानकारी मिलती है कि पिढीयों से इस स्थान पर आकर माता खेंवज का आशिर्वाद सोलंकीयों व्दारा प्राप्त किया जाता रहा है।यहाँ के पुजारी जी (राम सिंह जी पाराशर ) से जानकारी लेने पर पता करने पर उन्होंने बताया कि जब सन् 1995 में देई में एक विशाल यज्ञ हुआ था, उसमें देश के सभी जगहों से माता के भक्त शामिल हुए थे उन्हीं में से भीनमाल के साहुकार परिवार के एक बुजुर्ग भी आये थे उन्होंने ही वापस जाकर भीनमाल के मंदिर का निर्माणकरवाया ।रिसर्चरस ने भी इस स्थान को 1100 साल प्राचीन होना प्रमाणित किया है।आप लोगों के लीए मंदिर कि संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत है -विक्रम संवत 1010 में मुलराज जी द्वारा मंदिर का निर्माण करवाया गया ।विक्रम संवत 1020 में बावडी का निमार्ण करवाया।संवत 1552 मे सिध्दराज जी द्वारा मंदिर का विस्तार करवाया ।विक्रम संवत 1340 मे टोडा के महाराजा गोविंदराज जी ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया ओर परकोटे का निर्माण करवाया।2500 बीघा जमीन पर खांखरे ओर खेर के पोधे लगवाकर माता जी बनी घोषित कि ।मंदिर मे श्री नागर माता श्री भेवंज माता ओर श्री खेंवज माता कि मूर्तीयां विराजमान हैं ।खेंवज माता ओर भेवंज माता के बीच महीपाल पुत्र जी ( मोरपतर जी ) की मुर्ती है जिस पर पर्दा लगा रहता है इनके दर्शन सोलंकी राजपूतों को ही करवाये जाते हैं ।मंदिर के सामने चौक मे सात शेरों कि मूर्तीयां बनी हुई है ।मंदिर परिसर मे बटुक भैरव, सिध्द गणेश कि छतरीयाँ बनी हुईं हैं ।पिछले भुतेश्वर महादेव का छोटा गुम्बद वाला मंदिर बना हुआ है।
।। जय माँ खेंवज ।।

मंगलवार, 14 जून 2016

भैरई गांव के सोलंकियों का वंश वृक्ष

भैरई गांव के सोलंकियों का वंश वृक्ष


साभार
वीरेंद्र सिंह सोलंकी

सोलंकी वंश शाखा गोत्र

  सोलंकी राजचिन्ह
सोलंकी वंश का गोत्र-प्रवरादि

राजधानी -अन्हिलवाड़ पाटन

कुलदेवी - खींवज

व्रक्ष -खाखरो

नदी -जमना

चारण- हडियों

नगाड़ा- रणजीत

कुलदेव- सोमनाथ

गोत्र -भारद्वाज

वंश -अग्निवंश

वेद -यजुर्वेद

ऋषि- वशिष्ठ

उत्पत्ति -अग्निकुंड

डंका -कदम

अश्व -पंचकल्याणी

तम्बू -भगवा

निशान -पंचरंगी

ध्वज -लाल

मंगलवार, 7 जून 2016

शेरबहादुर सिंह


जैसलमेर का वह भाग जो नक्शे में पाकिस्तान की और धँसा दिखता है, वास्तव में एक व्यक्ति के दुस्साहस का परिणाम है। विभाजन की रेडक्लिफ रेखा के अनुसार वर्तमान सारा नहरी क्षेत्र पाकिस्तान में जाने वाला था किन्तुजब सीमांकन हेतु अधिकारी इधर आए तो एक व्यक्ति ने तलवार निकाल ली और इस दुर्गम क्षेत्र से उनका वापस निकलना मुश्किल हो गया।आखिर निर्णय हुआ कि इन "बाऊ जी" के पशु जितने क्षेत्र में चरते है वह सारा इलाका भारत में ही रहेगा।इस प्रकार सीमा रेखा, वर्तमान रामगढ़ से खिसक कर तनोट के उस पार तक चली गई और भारत को हजारों वर्गकिमी भूभाग मिला।उन दिनों इस वीरान रेगिस्तान को सम्भालना मुश्किल काम था सो पाकिस्तान ने भी कोई विरोध नहीँ किया।यह घटना भुटो वाली चौकी के पास की है। सम्बंधित अंग्रेज अधिकारी ने इस घटना को अपनी डायरी में लिखा है और दिल्ली संग्रहलाय में कहीँ सुरक्षित बताई जाती है।उस व्यक्ति का नाम था लिच्छि सिंह। पर अधिकारी ने उसकी बहादुरी देखकर उसे शेर बहादुर सिंह नाम दिया था।शेरसिंह के तेजो जनित विक्षोभ से प्रभावित होने से सीमारेखा उत्तर पश्चिम को मुड़ गई और शाहगढ़, तनोट, सेउवावाला, राघवातला, जोगवाला आदि भूभाग भारत को मिला।अधिकारी समझ गए थे, कि यदि यहाँ जनसंख्या रखनी है तो पशुपालन करना पड़ेगा और उस हेतु यह मरु कुँए इनके पास रहने चाहिए।खालतोंके12 गाँव पाकिस्तान जाने से बच गए।और बड़े मजे से पशुपालन के सहारे वे जी भी रहे थे।पर कालान्तर में नहर आने से यह गोचर भूमि सिकुड़ती चली गई। सारा आवंटन लेन देन और मनमर्जी के खेल में फंस गया। पशु मरे, भूमि सिकुड़ी, नहरी जमीन पर बाहर के लोग आकर बस गए।क्या कोई अरुणा राय या महाश्वेता देवी, इस विस्थापन के लिए आवाज उठाएगी?हजारों वर्गकिमी भूमि कभी जिनके पैरों तले थी वे आज सरकारी फाइलों के सामने कतार बांधे, भिखारी बन खड़े है।‪#‎kss
साभार केसरीसिंह सूर्यवंशी