टोडा रियासत-
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टोडा रियासत पर, समय - समय पर कई राजवंशो की राजधानी रह चूका है जैसे परमार, चौहान, सोलंकी, मुस्लिम, सिसोदिया जैसे राजवंशो ने राज किया था | सबसे लम्बा राज्य सोलंकी वंश का यहाँ पर रहा है 1303 से लेकर 1650 के लगभग का माना जाताहै | 15 वी और 16 वी शताब्दी में टोडा सोलंकियों की राजधानी भी रह चूका है | सोलंकी वंश के समय टोडा नगरी में बहुत से एतिहासिक स्थल बनाये गए जिनका साक्ष्य आज भी टोडा - टोंक गवाह दे रहा है | यह पर एक से बढ़कर एक योद्धाओ ने जनम लिया ना सिर्फ राजपूतो ने युद्धभूमि में अपनी तलवार बजायी बल्कि ताराबाई सोलंकी जैसी क्षत्रनियों ने भी अपनी जनम भूमि टोडा के लिए युद्ध के मैदान में तलवार बजायी है आज टोंक का हर स्थम्भ, नदियाँ, मंदिर, महल, बावड़ियाँ, छतरियां, तालाब , रुसी रानी महल (जो रानी रूठ जाति थी तो कुछ देर वो इस महल में एकांत में चली जाति थी ) इत्यादि सोलंकी वंश का खुला प्रमाण देते है | यहाँ पर किल्हनदेव, रूपवाल, डूंगर सिंह, राजकुमारी ताराबाई, कल्याण सिंह, जगन्नाथ सिंह, राव सुरतान सिंह जैसे योद्धाओ ने ना सिर्फ सोलंकी वंश की आन, बाण, शान को कायम रखा बल्कि समस्त हिन्दुत्व की रक्षा की अपनी मात्र भूमि की समय-समय पर रक्षा हेतु हसते- हसते बलिदान दे दिया | आओ हम बात करते है उस समय की जब टोडा में चित्तोड़गढ़ जैसा भीषणनर - संहार हुआ अकबर और मान सिंह द्वारा|मान सिंह और अकबर के सेनापतियों ने मेवाड और मारवाड जैसी बड़ी से बड़ी राजपूती रियासते जीत ली उसके बाद अकबर का होसला और बढ़ गया था | तब उसने सोचा की अब जो बची हुई छोटी – छोटी रियासते है उनके राजाओ को आगरा बुलाकर मेवाड का कत्ले आम और मुग़ल सल्तनत की तेज गति से फ़ैल रहे राज्य बताये जाए और सभी छोटी और बड़ी रियासत के राजा को मुस्लिमो की ताक़तबताई जाए अकबर ने सभी छोटी – छोटी रियासतों के राजाओ को मैत्री का पत्र (दोस्ती का प्रताव ) लिखा और अपने सेनापतियों द्वारा भिजवा दिए थे उनमे से एक थी टोंक रियासत इस समय यहाँ के राजा थे राव जगन्नाथ सिंह सोलंकी जो की बहुत बुद्धिमान, वीर, चतुर, हर कला में निपूर्ण उनके बड़े पुत्र कुंवर कल्याण सिंह जी थे | कुंवर कल्याण सिंह जी भी अपने पिता की तरह समझदार, बुद्धिमान, वीर, और चतुर थे |यह वो रियासत है जिसे अकबर का सेनापति और मान सिंह कछवाह नहीं जीत पाया था | तब अकबर ने मानसिंह से पूछा क्या - इतना ताक़तवर है टोंक रियासत की हमारी मुग़ल सल्तनत के बहादूर योद्धा भी उसे हमारी सल्तनत का हिस्सा नहीं बना पाए तो मान सिंह ने भी अपना सर नीचे कर लिया और कोई जवाब नहीं दे सका वो थी टोडा रियासत, जिला - टोंक | टोडा महल की एक और बड़ा तालाब तो दूसरी और घना जंगल और ऊँची-ऊँची पहाड़िया है | उन पहाड़ियों से दूर बेठा दुश्मन भी नज़र आ जाता है | उस समय यहाँ के राव जगन्नाथ सिंह थे | टोडा राव जगन्नाथ सिंह जी को कहीं पर भी आना जाना कम पसंद था इस लिए उनके पुत्र कुंवर कल्याण सिंह सोलंकी राज्य का मेल – मुटाव से लेकर हर कार्य खुद करते थे कुंवर कल्याण सिंह जी एक बहादूर, समझदार, चतुर, थे इस लिए उनके पिता राव जगन्नाथ सिंह जी ने अपना सारा कार्य उनके पुत्र कुंवर कल्याण सिंह जी करते थे | अकबर के सेनापति और मान सिंह ने पूरी कोशिश कर ली मगर टोंक को नहीं जीत पाए |आखिर में अकबर ने टोंक को दोस्ती करने हेतु राव जगन्नाथ सिंह जी को पत्र लिखा गया ( यह आप अभी चल रहे महाराणा प्रताप एपिसोड 462-463 देखें ) लेकिन राव जगन्नाथ जी के पुत्र कुंवर कल्याण सिंह जी वार्तालाप हेतु जाते है कुंवर कल्याण सिंह जी के साथ दो राज्य गोलुन्दा और बीजापुर के राजा भी रहते है| उस समय टोडा के कुंवर कल्याण सिंह जी ने अकबर के सामने अपना प्रताव रखा की हम अकबर को अपना मित्र कैसे मान ले, जबकि आमेर के राजा भारमल जी भी उनके साथ मित्रता करने आये थे और तुमने उनकी ही बेटी से शादी कर ली, चित्तोडगढ में अभी हाल ही में हुआ भीषण नर - संघार किया गया| हम कैसे मान ले की हमारी आन, बाण, शान के साथ अकबर नहीं खेलेगा तभी अकबर ने उन दो वीरो जयमल मेडतिया और पत्ता चुण्डावत की आगरा में जो मुर्तिया बनवाई तीनो राजाओ को दिखाई और यह कहाँ की अब (दिखावेके लिए बनायीं गयी मुत्रिया बताई ताकि राजपूत राजाओ को लगे की अब अकबर किसी तरह का रक्तपात नहीं चाहता है ) और यह सिद्ध किया की अब वो किसी राजपूत की आन, बाण, शान से नहीं खेलेगा और बिना युद्ध किये ही बाकी राजपूत राजाओ को अपना मित्र बनाकर मुग़ल सल्तनत को फैलाना चाहता था | बिना किसी का नुकशान हुए ही एकता का सूत्रधार का नाटक कर टोंक, गोलुन्दा, और बीजापुर के राजाओ को दिखाईऔर अपने झूठे जास्से देकर अपना मित्र बना लिया | लेकिन फिर भी यह मित्रता मुगलों और टोंक के सोलंकियों के बीच ज्यादा देर नहीं रही |जिस समय कुंवर कल्याण सिंह जी अपनी बहिनका रिश्ता लेकर आमेर गए तब वो आमेर में अपने कक्ष (कमरे) में बेठे-बेठे चित्र बना रहे थे तब काली स्याही का एक धब्बा कुंवर कल्याण सिंह के कुरते पर गिर गया जब चित्रकला कर के वो कक्ष से बाहर आये तो मान सिंह द्वारा सोलंकी वंश पर टिपणीकी गयी “अब तो सोलंकियों के भी काला लग गया” यह कुंवर कल्याण सिंह जी को सही नहीं लगा तब, कुंवर कल्याण सिंह सोलंकी ने टिपण्णी की “यह तो स्याही का धब्बा हैधोने से साफ़ हो जायेगा, लेकिन अपने तो अपने घर की बेटी मुगलों को दी है वो कालाकैसे धुलेगा” और कुंवर कल्याण सिंह जी आमेर से टोंक वापस आ गए तब मान सिंह ने अकबर का सहारा लिया और सोलंकियों की रियासत टोडा पर हमला कर दिया रात के घने अँधेरे में जब चाँद बादलो के पीछे छीप जाता तब मुग़ल सैनिक उस अँधेरे की आड़ लेकर आगे बढ़ते और इसी तरह वो लोग धीरे-धीरे महल के नजदीक पहुच गए | उस समयअकबर खुद अपनी सेना का नेत्रत्व कर रहा था और मान सिंह के साथ आया था लेकिन टोडाराव जगन्नाथ सिंह जी बहुत चतुर और एक वीर योद्धा थे | उन्होंने पहले ही अपने राजपरिवार के सभी बाल-बुजुर्गो को महल से बाहर भेज दिया था और अपने सैनिको को पहाड़ पर निगरानी हेतु खड़ा कर दिया लेकिनअँधेरे की आड़ से कोई नज़र नहीं आया और कब मुग़ल सेना महल के करीब पहुची इसकी भनक भी नहीं लगी किसी को तब मान सिंह ने जोर से हुक्नार भरते हुए कुंवर कल्याण सिंह सोलंकी को कहाँ "आप अपनी जिस लड़की की शादी मुझसे करवा रहे थे अब उसे बादशाह अकबर के साथ विवाह कराओ या फिर हमसे युद्ध करो" | तब कुंवर कल्याण सिंह जी ने युद्ध करना उचित समझा और देखते ही देखतेरात भर में हजारो मुगलों के बीच में सेकेडो की संख्या में सोलंकी राजपूत सैनिको ने लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की | यह घटना महाराणा प्रताप के जंगलो में भटक रहे थे तब की है |सोलंकियों के समय यह राज्य सांभर, मांडलगढ़, नैनवा, नागौर, जालोर दही, इंदौर, मालवा, गुजरात का कुछ भाग, तक सोलंकियों का राज्य फैला हुआ था | 1303 से लेकर 1650 इसवी तक यहाँ सोलंकियों काराज्य कायम रहा और 15वी तथा 16वी शताब्दी तक यह राज्य सोलंकियों की राजधानी बना रहा।